९३
इतिहाससमुच्चय भाषा ।
ऋतु २ में पूजन करनेवाले उत्तम ऋत्विज ब्राह्मण को
दान देनेवाला होकर मदसे रहित होय जिसने कि कन्दों
को चुराया होय १०४ ऋषिबोले हे श्वानके सखा, सं-
न्यासी ! तैंने जो शपथ करी है यह तो ब्राह्मणों को वा-
ञ्छितही है इस हेतुसे हम सब के बीच में तैंनेही चोरी
करी है १०५ संन्यासी बोला हे ब्रह्मर्षि, ब्राह्मणलोगो !
मैंने तुम्हारे धर्म सुनने के लिये इन कन्दमूलों को चु-
राया है मैंने अन्तर्हित होकर तुम्हारे इन कन्दमूलों को
छुपाया है और मुझको इन्द्र जानों १०६ हे मुनिस-
त्तमो ! तुमने लोभके त्यागने से अक्षयलोकों को जीत-
लिया है इस हेतु से तुम विमानों पर बैठो और हम
तुम समेत स्वर्ग को चलते हैं १०७ इसके अनन्तर
वह ऋषि लोग उसको इन्द्र जानकर बहुत प्रसन्न हुये
और उसीके संग स्वर्ग में गये १०८ हे राजन् ! वह
मुनिसत्तम प्रतिग्रह दान को घोर जानते हुये मृतकको
भी भक्षण करके तृष्णा से मूढ़ नहीं हुये १०९ और
बहुत प्रकार के भोगों से लोभित करानेपर भी लोभ
नहीं करते हुये इस हेतु से स्वर्ग में गये ११० जो म-
नुष्य इन ऋषियों के इस चरित्र के माहात्म्य को सुनेगा
वह सब पापों से छूटकर स्वर्ग में प्राप्त होगा ।। १११ ।।
इति श्रीइतिहाससमुच्चयभाषायांसप्तर्षिसंवादोनाम
एकादशोऽध्यायः ।। ११ ।।
बारहवां अध्याय ।।
युधिष्ठिर बोले कि, हे भारत ! पाप का कौन सा
93
itihāsasamuccaya bhāṣā |
ṛtu 2 meṃ pūjana karanevāle uttama ṛtvija brāhmaṇa ko
dāna denevālā hokara madase rahita hoya jisane ki kandoṃ
ko curāyā hoya 104 ṛṣibole he śvānake sakhā, saṃ-
nyāsī ! taiṃne jo śapatha karī hai yaha to brāhmaṇoṃ ko vā-
ñchitahī hai isa hetuse hama saba ke bīca meṃ taiṃnehī corī
karī hai 105 saṃnyāsī bolā he brahmarṣi, brāhmaṇalogo !
maiṃne tumhāre dharma sunane ke liye ina kandamūloṃ ko cu-
rāyā hai maiṃne antarhita hokara tumhāre ina kandamūloṃ ko
chupāyā hai aura mujhako indra jānoṃ 106 he munisa-
ttamo ! tumane lobhake tyāgane se akṣayalokoṃ ko jīta-
liyā hai isa hetu se tuma vimānoṃ para baiṭho aura hama
tuma sameta svarga ko calate haiṃ 107 isake anantara
vaha ṛṣi loga usako indra jānakara bahuta prasanna huye
aura usīke saṃga svarga meṃ gaye 108 he rājan ! vaha
munisattama pratigraha dāna ko ghora jānate huye mṛtakako
bhī bhakṣaṇa karake tṛṣṇā se mūढ़ nahīṃ huye 109 aura
bahuta prakāra ke bhogoṃ se lobhita karānepara bhī lobha
nahīṃ karate huye isa hetu se svarga meṃ gaye 110 jo ma-
nuṣya ina ṛṣiyoṃ ke isa caritra ke māhātmya ko sunegā
vaha saba pāpoṃ se chūṭakara svarga meṃ prāpta hogā || 111 ||
iti śrīitihāsasamuccayabhāṣāyāṃsaptarṣisaṃvādonāma
ekādaśo 'dhyāyaḥ || 11 ||
bārahavāṃ adhyāya ||
yudhiṣṭhira bole ki, he bhārata ! pāpa kā kauna sā
इतिहाससमुच्चय भाषा ।
ऋतु २ में पूजन करनेवाले उत्तम ऋत्विज ब्राह्मण को
दान देनेवाला होकर मदसे रहित होय जिसने कि कन्दों
को चुराया होय १०४ ऋषिबोले हे श्वानके सखा, सं-
न्यासी ! तैंने जो शपथ करी है यह तो ब्राह्मणों को वा-
ञ्छितही है इस हेतुसे हम सब के बीच में तैंनेही चोरी
करी है १०५ संन्यासी बोला हे ब्रह्मर्षि, ब्राह्मणलोगो !
मैंने तुम्हारे धर्म सुनने के लिये इन कन्दमूलों को चु-
राया है मैंने अन्तर्हित होकर तुम्हारे इन कन्दमूलों को
छुपाया है और मुझको इन्द्र जानों १०६ हे मुनिस-
त्तमो ! तुमने लोभके त्यागने से अक्षयलोकों को जीत-
लिया है इस हेतु से तुम विमानों पर बैठो और हम
तुम समेत स्वर्ग को चलते हैं १०७ इसके अनन्तर
वह ऋषि लोग उसको इन्द्र जानकर बहुत प्रसन्न हुये
और उसीके संग स्वर्ग में गये १०८ हे राजन् ! वह
मुनिसत्तम प्रतिग्रह दान को घोर जानते हुये मृतकको
भी भक्षण करके तृष्णा से मूढ़ नहीं हुये १०९ और
बहुत प्रकार के भोगों से लोभित करानेपर भी लोभ
नहीं करते हुये इस हेतु से स्वर्ग में गये ११० जो म-
नुष्य इन ऋषियों के इस चरित्र के माहात्म्य को सुनेगा
वह सब पापों से छूटकर स्वर्ग में प्राप्त होगा ।। १११ ।।
इति श्रीइतिहाससमुच्चयभाषायांसप्तर्षिसंवादोनाम
एकादशोऽध्यायः ।। ११ ।।
बारहवां अध्याय ।।
युधिष्ठिर बोले कि, हे भारत ! पाप का कौन सा
93
itihāsasamuccaya bhāṣā |
ṛtu 2 meṃ pūjana karanevāle uttama ṛtvija brāhmaṇa ko
dāna denevālā hokara madase rahita hoya jisane ki kandoṃ
ko curāyā hoya 104 ṛṣibole he śvānake sakhā, saṃ-
nyāsī ! taiṃne jo śapatha karī hai yaha to brāhmaṇoṃ ko vā-
ñchitahī hai isa hetuse hama saba ke bīca meṃ taiṃnehī corī
karī hai 105 saṃnyāsī bolā he brahmarṣi, brāhmaṇalogo !
maiṃne tumhāre dharma sunane ke liye ina kandamūloṃ ko cu-
rāyā hai maiṃne antarhita hokara tumhāre ina kandamūloṃ ko
chupāyā hai aura mujhako indra jānoṃ 106 he munisa-
ttamo ! tumane lobhake tyāgane se akṣayalokoṃ ko jīta-
liyā hai isa hetu se tuma vimānoṃ para baiṭho aura hama
tuma sameta svarga ko calate haiṃ 107 isake anantara
vaha ṛṣi loga usako indra jānakara bahuta prasanna huye
aura usīke saṃga svarga meṃ gaye 108 he rājan ! vaha
munisattama pratigraha dāna ko ghora jānate huye mṛtakako
bhī bhakṣaṇa karake tṛṣṇā se mūढ़ nahīṃ huye 109 aura
bahuta prakāra ke bhogoṃ se lobhita karānepara bhī lobha
nahīṃ karate huye isa hetu se svarga meṃ gaye 110 jo ma-
nuṣya ina ṛṣiyoṃ ke isa caritra ke māhātmya ko sunegā
vaha saba pāpoṃ se chūṭakara svarga meṃ prāpta hogā || 111 ||
iti śrīitihāsasamuccayabhāṣāyāṃsaptarṣisaṃvādonāma
ekādaśo 'dhyāyaḥ || 11 ||
bārahavāṃ adhyāya ||
yudhiṣṭhira bole ki, he bhārata ! pāpa kā kauna sā