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Browning, Colin A. R.; Sena, Rāmacandra [Übers.]
Hidāyatanāmā — Lakhanaū: Navalakiśora, 1871

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https://doi.org/10.11588/diglit.51639#0040
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रा

द० ४--जिलद्नजे प्रतिसमासदोंकों अधिकार हे कि लहाँ उचित
समफ सकल कंपेंटियां सरकारी पाठशाला ओके लनिमिन्न अपने जिलश्य
में नियल करे. इस प्रकारकी, सबकमेठो केसमासद साहब डिपटीका>

सिर बहादुर अपने जिचारसे प्रति समय बढा दिया करेंगे ॥

द० ६-्प्रति सबकमेठीमें ४ समासद्ले न्यन न होवें ओर डेड-
मास्टर अधात सख्यपाठक पाठशालाके सबकमेटोके कारकन नि-
यत होंगे ॥

,.... द० "-स्कल कमेटियां किसी . पाठशालाके प्रबन्ध ओर पाठकों
_ को स्वत: आज्ञा दनमें उद्यत नहीं परन्त न्यन से न्यन प्रतिमास रुक
बार पाठशालाकों देखे अर किताब केफियतमें स्वत: वा क्ारकनकी
द्वारा केफ़ियत लिखे पाठक और बिद्या्थिं योंकी समय पर हाज़िरो ओर
पाठशाला का कार्य यधावस्थित हाता डे अवश्य लिखा करें ॥

द० <--सुख्यपाठक स्कलक्मेटीकी केफ़ियत यदि आवश्यक जाने ते
पहलो जलाइ आर पहली नवस्लर औ्रोर १ जनवरी के या इससे प्रथम
ज़िला कमेटीक्षि निकट भेजें ॥ . ं



द० <-समासद लोग जिस. सपय पाठशाला देखनेकेा आबें ता.
_ वहां के मुख्यपाठक लोगोंक्रा उचितहि कि उन से अति शिष्रता करें
आर वहां का समाचार निबंदन कर पाठशालाकी बद्धिके विषयमें
बाष्ता करें ॥

द० १०--यदि काइई बिद्यार्थों बिना फ़ीस मरती होना चाहे ता
_ सुख््यपाठककोा उचित्ग है कि उसे कली के ससम्सख्ख करें कि वो इसबात
का निट्टांरण कर देंगी कि विद्यार्धों सेत मरती किया जावे वा नहीं ॥

दू० ११५--मुख्य पाठक जिस बिद्यार्थोक्षा दराचार ओर फीस न देने
आर पुस्तक पास न रखनेके कारण पाठशालासे निकालना चाहे ते
उसे प्रधमन्या यक्के अर्थ कमेटीके सा्मख करें परन्त दुप्ठ प्रमति और
अमयांदाके कारण पाठककोा अधिकारहे कि उसेतत्काल निकाल देवे

_ ओर निकालदेनेका कारण कमेंटीके अज्लीकारके लिख में जे ॥
दू० १९-यदि बिद्यार्थों लोग अनपस्थित रहले और अपने पाठकी
 
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