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Kanhaiyālāla [Bearb.]
Chandaḥ pradīpa: bhāṣā meṃ — Ilāhābāda: Gavarnmeṇṭa Chāpekhānā, 1884

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https://doi.org/10.11588/diglit.51812#0011
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ख्व्ण

कंदप्रदीप
१ पाठ ;
. कीरति धन व्यवहार जग अस सल छारे छोइ ।
छे[ति कबित ते चतर्इं जगत रास वश हद ॥
ये अनेक फल काव्य के पढने से होते हें इस छेत से काव्य का

पठना आवश्यक हे ॥
परंत उसका सम्यक ज्ञान द्धंद के जानने के आधीन डे इस कारण




९२ पाठ ;
नात दे प्रकार की छाती है एक ता बचनिका में दसरी छंद में इस .


ं लच्णा . हा.
लघ गस बे नियमपवंक नियमित जा वाया का समह है उसके.
रून्द कहते हैं वह दे प्रकार का है रुक गद्य दसरा पद जहाँ माचा


कवि के बनाये हुर - अलंकार आदि सहित ओर देघ रहित जा शब्द


पद का बरोन
पद्य के दो प्रकार हैं एक ता जहां वणे अथात अन्नरों हो की शिनती
हा उसके वयोवृत्त कहते हैं और जहां समाचा का नियम हो उसके .
माचादइृत्त कहते हैं ॥
 
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