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१६२
इतिहाससमुच्चय भाषा ।
हुआ न होगा न अब कोई है सब जगत अन्नकेही मूल्य
वाला है और अन्नमें ही स्थित है ४७ पितृ, देव, दैत्य,
यक्ष, राक्षस, किन्नर, मनुष्य और पिशाच यह सब अन्न
के ही आश्रय हैं ४८ इस हेतु से सबप्रकार से अन्न के
दान का करना अवश्य चाहिये अन्न को देनेवाला पुरुष
प्रसन्नता को प्राप्त होताहै और अचल परमगति को
पाता है ४९ और कन्यादान, वृषोत्सर्ग, तीर्थसेवा और
देवपूजन यह सब अन्नदान की सोलहवीं कला के भी
समान नहीं हैं ५० हाथी घोड़े और रथ इन सब के स-
मह अथवा मणि, रत्न, पृथ्वी यह सबभी अन्नदान की
सोलहवीं कला के योग्य नहीं हैं ५१ अन्नमेंही प्राण,
बल, तेज, धृति और स्मृति यह सब और अन्नसेही
बीज की उत्पत्ति होकर अन्नसेही सब कुछ धारण होता
है ५२ । ५३ और पुण्डरीक अश्वमेध षोडशिकयज्ञ
अग्निष्टोमयज्ञ और त्रिरात्रिकयज्ञ यह सब और इनके
विशेष जितने यज्ञादिक हैं वह सब और सुन्दर विस्तार
वाले राजाओंके भी यज्ञ अन्नही से प्रवृत्त होते हैं ५४
और पर्वत, वन, द्वीप और समुद्र इन सबों समेत जो
सम्पूर्ण मृथ्वी का दान है वह भी उसीके समान है जो
प्रतिदिन अन्न का दान देताहै हे वत्स ! यह तुझे मैंने
बहुत थोड़ा थोड़ा ही सुनाया है ५५ हे द्विज ! इस हेतुसे
जो आप भक्षण करताहै वही क्षुधा से पीड़ितहुये अन्य
मनुष्यों को भी देना चाहिये ५६ भीष्मजी बोले हे कौ-
न्तेय ! वह वटु उस भिक्षुक के उपदेश करके क्षुधा से पी-
ड़ित जनों के अर्थ सदैव अन्न देताभया सो इस हेतु से

162
itihāsasamuccaya bhāṣā |
huā na hogā na aba koī hai saba jagata annakehī mūlya
vālā hai aura annameṃ hī sthita hai 47 pitṛ, deva, daitya,
yakṣa, rākṣasa, kinnara, manuṣya aura piśāca yaha saba anna
ke hī āśraya haiṃ 48 isa hetu se sabaprakāra se anna ke
dāna kā karanā avaśya cāhiye anna ko denevālā puruṣa
prasannatā ko prāpta hotāhai aura acala paramagati ko
pātā hai 49 aura kanyādāna, vṛṣotsarga, tīrthasevā aura
devapūjana yaha saba annadāna kī solahavīṃ kalā ke bhī
samāna nahīṃ haiṃ 50 hāthī ghoड़e aura ratha ina saba ke sa-
maha athavā maṇi, ratna, pṛthvī yaha sababhī annadāna kī
solahavīṃ kalā ke yogya nahīṃ haiṃ 51 annameṃhī prāṇa,
bala, teja, dhṛti aura smṛti yaha saba aura annasehī
bīja kī utpatti hokara annasehī saba kucha dhāraṇa hotā
hai 52 | 53 aura puṇḍarīka aśvamedha ṣoḍaśikayajña
agniṣṭomayajña aura trirātrikayajña yaha saba aura inake
viśeṣa jitane yajñādika haiṃ vaha saba aura sundara vistāra
vāle rājāoṃke bhī yajña annahī se pravṛtta hote haiṃ 54
aura parvata, vana, dvīpa aura samudra ina saboṃ sameta jo
sampūrṇa mṛthvī kā dāna hai vaha bhī usīke samāna hai jo
pratidina anna kā dāna detāhai he vatsa ! yaha tujhe maiṃne
bahuta thoड़ā thoड़ā hī sunāyā hai 55 he dvija ! isa hetuse
jo āpa bhakṣaṇa karatāhai vahī kṣudhā se pīड़itahuye anya
manuṣyoṃ ko bhī denā cāhiye 56 bhīṣmajī bole he kau-
nteya ! vaha vaṭu usa bhikṣuka ke upadeśa karake kṣudhā se pī-
ड़ita janoṃ ke artha sadaiva anna detābhayā so isa hetu se
 
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